“किसान और श्रमिक की व्यथा”
कैसे बन्धु ?
कैसे रिश्ते ?
कैसा यह संसार
कैसा जीवनसाथी भाई ?
स्वार्थ पड़े तब प्यार
स्वार्थ पड़े तब प्यार
किया है यहाँ सभी ने
बैरी भी घूमे बन मीत
दिल की प्रेम गली में
विपदा आई नहीं
किसी ने मुझे सम्भाला
मैंने स्वेद बहाकर
कितने घरों को सम्भाला
ना सरकार हमारी
ना दो गज जमीं हमारी
अपने स्वेद से सींचकर
मैंने फसल उगा ली…
उत्तम कविता
बहुत बहुत धन्यवाद आपके प्रेम हेतु
Very nice
Tq
सुंदर रचना
Thanks di
सुन्दर