किसान की व्यथा
अन्न उपजाऊं फिर खाना खाऊं,
जन्म ले लिया किसान के
देश कहे अन्नदाता मुझको,
बैठा हूं सड़कों पर शान से।
दिल्ली के बॉर्डर पर पड़ा हूं,
अपने हक की खातिर मैं
खेत छोड़ बॉर्डर पर बैठा,
मैं भी हूं भारत मां का बेटा
धरती पुत्र कह लो,
या फिर कहो किसान रे
अन्न उपजाऊं फिर खाना खाऊं,
जन्म ले लिया किसान के
पूरी सर्दी गुजर गई है,
दिल्ली के ठंडे बॉर्डर पर
थोड़ा सा ध्यान धरो तुम
मेरी भी चंद आहों पर
दुखी हुआ था तब ही आया,
किसको राहों पर रहना भाया
राजनीति ना करो म्हारे संग,
मैं तो एक किसान रे।
अन्न उपजाऊं फिर खाना खाऊं,
जन्म ले लिया किसान के।।
_____✍️गीता
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 19, 2021, 5:54 pm
अतिसुंदर रचना
Geeta kumari - February 19, 2021, 8:36 pm
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी 🙏
Satish Pandey - February 20, 2021, 11:12 am
कवि गीता जी की बहुत सुंदर और सटीक रचना
Geeta kumari - February 20, 2021, 2:17 pm
बहुत सारा धन्यवाद सतीश जी
Pragya Shukla - February 20, 2021, 3:43 pm
बहुत खूब
Geeta kumari - February 20, 2021, 5:15 pm
धन्यवाद प्रज्ञा