कुछ कल्पनाएं…

कुछ कल्पनाएं
कविता का रूप लेती हैं
कुछ विस्मृत हो जाती हैं
कुछ सपनों में मिलती हैं तो
कुछ मद में बह जाती हैं
लेकिन कुछ कल्पनाएं
कल्पानाएं ही रह जाती हैं
सुबक-सुबक कर रोती हैं
सिसक-सिसक रह जाती हैं….

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