कुछ लोग यूँ भी ज़िन्दगी बसर कर रहे है……..
कुछ लोग यूँ भी ज़िन्दगी बसर कर रहे है
बीन कर कचड़ा सब्र कर रहे है
ज़िन्दगी सिर्फ अमीरों की नहीं है
ये तो तोहफा है खुदा का, ये गरीबों की भी है
क्यों करते हो नफरत तुम इन सब को देख कर
ये हम जैसों की ज़िन्दगी को सरल कर रहे है
जब आते है गली मे, कुत्ते भोंकते है इन पर
सब देखते है इनको शक की नज़र से
कभी झाँक कर देखो इन सब के घर और आंगन मे
ये अपनी ज़िन्दगी का क्या हस्र कर रहे है
अक्सर हम फैंक देते है कचरे को यूँ ही
ये सब उन्ही कचरों मे रोटी ढूंढते है
ये भी काम रहे है अपनी आजीविका
ये भी हमारी तरह इधर से उधर कर रहे है
ज़िन्दगी इनकी भी बड़ी आम सी दिखती है
बस ज़रा बदनाम सी दिखती है
हम सब भी करते है काम अपना अपना
वो सब भी इसी तरह अपना अपना कर्म कर रहे है
कड़ी मेहनत से जूझना पड़ता है उन सब को भी
थकान शरीर की होती है उन सब को भी
हम सब उठाते नहीं कचड़ा शर्म के मारे ये सच है
मगर ये सब ये काम बेधड़क कर रहे है
शिकार होते है ये बस हमारे बनाये हुए समाजो के
मिलती है गालियां, डांट और गुस्सा
कचड़ा अगर ये न उठाये तो गंदगी बहुत बढ़ जाये हर जगह पैर
ये सब ऐसा कर के, बहुत बड़ा धर्म कर रहे है
कुछ लोग यूँ भी ज़िन्दगी बसर कर रहे है
बीन कर कचड़ा सब्र कर रहे है …………………………………..!!
!……….D K……….!
Miserable condition
बहुत बेहतरीन रचना
समाज के शोषित वर्ग को सहानुभूति देती बहुत सुंदर पंक्तियां
गरीबों की व्यथा का यथार्थ चित्रण