कुछ समझ आता नहीं
किस तरफ की बात बोलूं
कुछ समझ आता नहीं,
सत्य क्या है झूठ क्या है
कुछ समझ आता नहीं।
एकतरफा बात सुनकर
धारणा कुछ और थी
दूसरे के पक्ष को सुन
कुछ समझ आता नहीं।
बाहरी आभा सभी की
खूबसूरत मस्त दिखती
भीतरी हालत है कैसी
कुछ समझ आता नहीं।
पक्ष की अपनी हैं बातें
फिर विपक्षी की दलीलें
कौन सच्चा देशसेवी
कुछ समझ आता नहीं।
ठंड में ठिठुरा हुआ हूँ
गर्म मौसम में झुलसता,
कौन सा मौसम सही है
कुछ समझ आता नहीं।
पहले बचपन फिर जवानी
सब अवस्था देखकर
कौन सी स्थिति सही है
कुछ समझ आता नहीं।
Very nice, very nice
Thanks
क्या खूब कही
फैसला करने में असमर्थ लग रहे हैं कवि जी
बहुत बहुत धन्यवाद
कवि की असमंजसता को बयां करती हुई सुन्दर कविता
बहुत बहुत आभार
बहुत खूब
सादर आभार
धन्यवाद