कुदरत की छवि
थोड़ा निहारने दो
कुदरत की छवि मुझे तुम
तुम भी निहार लो ना
इस वक्त भूलो सब गम।
सूरज निकल रहा है
सब ओर लालिमा है,
कलरव में उडगनों के
प्यारी सी मधुरिमा है।
चारों तरफ है शुचिता
सब साफ दिख रहा है,
ठंडी पवन का झौंका
नवगीत लिख रहा है।
मज्जन किये से पर्वत
उन रजकणों से ऐसे
चमके हुए हैं देखो,
मोती भरा हो जैसे।
फूलों ने रात भर में
भर कर शहद स्वयं में
भँवरे बुलाने जैसे
संदेश भेजा वन में।
भेजी सुंगध वन में
भेजी उमंग मन में
शोभा सुबह की ऐसे
उल्लास लाई मन में।
वाह बहुत सुंदर रचना
प्रकृति के सौंदर्य का यथार्थ चित्रण
थोड़ा निहारने दो
कुदरत की छवि मुझे तुम
तुम भी निहार लो ना…
भेजी सुंगध वन में
भेजी उमंग मन में
शोभा सुबह की ऐसे
उल्लास लाई मन में।
__________ संपूर्ण कविता काव्य सौंदर्य लिए हुए बहुत ही मधुर है।
प्रकृति के सौंदर्य का संपूर्ण दर्शन है आपकी कविता में। बहुत सुंदर शिल्प बहुत सुंदर भाव, लाजवाब अभिव्यक्ति एवम् अद्भुत लेखन , वाह!
प्रकृति के सौंदर्य का यथार्थ चित्रण
वाह..बहुत लाजवाब कविता
बहुत ही सुन्दर कविता सर
लाजवाब,,,🙏🙏
वेरी नाइस
अतिसुंदर भाव