कैसी वेबसी
ये कैसी बेबसी है
नाराज़गी को ढो रहे हैं
अक्षमता को आकने के बदले
दूसरे की कमियों को गिन रहे हैं ।
ये दिन है कैसा
ना उम्मीदों का आसिया है
ख़्वाहिशों के जलने की
चुपचाप मातम मना रहे हैं ।
हर दुआ अपनी
जो कभी कबूल हो गयी थी
उन मन्नतो से ही
अपने अपनों से ज़ुदा हो रहें हैं ।
हर साँस में जिनकी
ख़ैरियत की ही दुआ आ रही थी
वही गैर से बनकर
इल्जामो की झङी लगा रहे हैं ।
किसको कहे अपना
अपना कहाँ अब है कोई
अपने ही इतर की
अभिनय, मन से निभा रहे हैं ।
बुरा जो देखन मैं चला
बुरा ना मिलया कोय
जो दिल खोजा आपनो
मुझसे बुरा ना कोय”
बहुत ही सत्य व स्तरीय रचना👌👌👌👌👌👌👌👌
आशा है आप और भी खूबसूरत कवितायें हमें जल्दी ही प्रस्तुत करेंगी
लोगों की फ़ितरत अगर हम समझ जाते।
यह दिल यों न आज खून की आँसू रोते।।
बहुत खूब
खूबसूरत अभिव्यक्ति
बेहतरीन