कोख़ से मैं कितना बचती रही

कोख़ से मैं कितना बचती रही,
दुनिया में ला कर तुमने ठुकराया,

शर्म मुझे है ऊपरवाले की इस रचना पर
जहाँ जिस्म के भूखों को मैंने कदम-कदम पे पाया।।

-मनीष

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close