क्या है शबाब
तुम्हें देख फीका लगने लगा माहताब।
चुरा लिया तुमने, मेरी नींदें मेरे ख्वाब।
शाने पे रख के सर, जुल्फों से खेलना,
तुम्हें गले लगाकर जाना, क्या है शबाब।
तुम्हारा समझाना, हद से न गुजर जाना,
वरना संभल ना सकोगे, फिर तुम जनाब।
यहां सीता भी ना बच सकी रुसवाई से,
ना किया करो हंसकर, किसी को आदाब।
इसे शिकायत कहो, या दिल-ए-मजबूरी,
गलत ना समझना, मोहब्बत है बेहिसाब।
ढल जाओ बस यूं ‘देव’ की चाहत में,
दुनिया से लड़कर, मैं दे सकूं जवाब।
देवेश साखरे ‘देव’
शाने- कंधे
Bahut khub
Thanks
वाह जी वाह क्या बात है
Thanks
Nice
Thanks
Kya bat 👍
Thanks
Achchhi h
Thanks
Very good
Superb
यहां सीता भी ना बच सकी रुसवाई से
बहुत सुन्दर