**खाने को कुछ निवाले दे दो**
द्वार पर खड़ी हूँ
भीख दे दो
सीख नहीं कुछ अन्न-जल दे दो
तेरे बाल- बच्चे सलामत रहें,
घर-द्वार फूले-फले,
बड़ी भूंख लगी है
कुछ खाने को दे दो
सीख नहीं कुछ अन्न-जल दे दो…
कई दरवाजे होकर आई हूँ
तेरे द्वार पर कुछ आस लेकर आई हूँ
ताजा ना हो तो बासी ही दे दो
ओ बेटी ! तुझे अच्छा घर-बार मिलेगा
खाने को कुछ निवाले दे दो
यह सुनकर मैं निकली
उस बूढ़ी दादी को देखकर
मेरी आत्मा पिघली
एक नहीं चार ले लो,
बासी नहीं ताजा ले लो
ओ दादी! जरा पहले हाथ धो लो
फिर पेट भर कर जितना मन हो खा लो….
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“सत्य घटना पर आधारित एवं मन में उपजे भाव”
आप भी किसी जरूरतमंद की सहायता कीजिये…
*करके देखिये अच्छा लगता है*
एक निर्धन वृद्ध भिक्षुका के लिए कवियित्री के कोमल ह्रदय की भावनाओं की सुंदर भावाभिव्यक्ति
धन्यवाद
सुन्दर
Tq
सुंदर