खिलौने वाला
जी, खिलौने वाला हूँ मैं, खिलौने बेंचता हूँ
गुड़िया,हाथी,घोड़े,और ग़ुब्बारे बेंचता हूँ
मुझे बचपन की यादों का सौदागर ना समझना
चंद ज़रूरतों की ख़ातिर तमाम ख़ुशियाँ बेंचता हूँ
पर अपने ख़ुद के बच्चों को खिलौने नहीं दिला पाता
बर्फ़ का गोला, ठेलें की चाट नहीं खिला पाता
बहरहाल,बच्चें समझदार हैं मेरे, मेरी मजबूरी समझ लेते हैं
गूँधे आटे से चिड़ियाँ बना के जों दूँ, उसको ही खिलौना समझ लेते हैं
मेरे संग साइकल की सवारी उन्हें कार सी लगतीं है
ज़िंदगी ग़म में अभिशाप तो ख़ुशी में उपहार सी लगती है
देखा है मैंने, पैसे वालों के बड़े घरों में तकरार बहुत है,
अपना तो छोटा सा आशियाना है, पर प्यार बहुत है,
पर प्यार बहुत है ❤️
✍️ Rinku Chawla
अतिसुंदर भाव
थैंक्स यू
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
आपकी रचनाओं में नकारात्मकता के ठीक बाद सकारात्मक भावनाओं का आगमन होता है यह सब मुझे बहुत अच्छा लगा।
इतनी बारीकी से पंक्तियों को समझने की कला में
आप काफ़ी निपुण है मुझे काफ़ी अच्छा लगा आप जैसे कलाकार से रुबरू होकर
अरे सर ! बस कोशिश करते हैं भाव को समझने की,
बाकी बहुत कुछ सीखना है अभी तो हमें भी।
बहुत अच्छा लगता है अलग-अलग विषयों पर कविता पढ़ना,।
आप जैसों की लेखनी से ही अच्छी-अच्छी कविता पढ़ने को मिलती है इसलिए लगें रहें लेखन साधना में 👌🙏
बहुत भाव पूर्ण कविता है। सकारात्मक विचारो से परिपूर्ण सुंदर रचना
Thanks Geeta ji, last contest main jeet ke lie apko badhai
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
🙏
बहुत खूब, बहुत सुन्दर
Thanks sir
अति सुन्दर रचना
थैंक्स अनुज भाई