खुद की जंग

ना जाने कितनी निर्भया
ना जाने, कैसी मर्दानगी
बर्बरता की हदें लांघी
जुबां तक काटी
धरती भी नहीं कांपी
कानून को कुछ ना समझे
कौन इन्हे इन्सान कहे
जानवर भी इनसे हारे
भगवान् भी नहीं आए
बस ,अब बहुत हुया
नारी को ही जगना होगा
सितम का सामना करना होगा
जंग को खुद ही लड़ना होगा
जंग को खुद ही लड़ना होगा।

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Responses

  1. बहुत जबरदस्त लिखा है आपने। कुछ कहते नहीं बन रहा है। मन के भीतर से निकली इस अभिव्यक्ति को प्रणाम।

  2. इस दुखद घटना का बहुत ही सटीक और यथार्थ चित्रण । बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ।

  3. बहुत ही मार्मिक
    “बस ,अब बहुत हुया
    नारी को ही जगना होगा
    सितम का सामना करना होगा
    जंग को खुद ही लड़ना होगा
    जंग को खुद ही लड़ना होगा।”
    भावपूर्ण व बहुत सुंदर लेखनी

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