खुशियों पर सबका ही हक है
खुद ही खाऊं खुद ही पाऊँ
दूजे का हक भी खुद खाऊं
दुनिया का जो भी अच्छा हो
वह मुझे मिले, मैं सुख पाऊँ।
सब पर मेरा राज चले
सब मेरी बातों को मानें
जिसको जैसे चाहे हांकूँ,
इसको दानवता कहते हैं।
मैं भी पाऊँ और भी पायें
खुशियों पर सबका ही हक है,
दुनिया में खुशियां बरसें सब
अपना भाग बराबर खायें।
रहें स्वतंत्र सब जीने को
सबको इज्जत दूँ इज्जत लूँ
इसको मानवता कहते हैं।
वाह सर अतिउत्तम
बहुत खूब
बहुत खूब
कवि सतीश जी की लाजवाब रचना । दानवता और मानवता के बीच का फर्क समझती हुई बहुत ही सुंदर कविता ।बेहतरीन कृति ,इस प्रतिभा को प्रणाम
सुन्दर