खूब बरसात

खूब बरसात हो रही है
आहट है सर्दियों की
पानी है सब तरफ
तर हो गई धरा है।
जाने कहाँ से उड़कर
आकाश में समुंदर,
पहुँचा हुआ है देखो
मन सोच यह रहा है।
कोई नहीं
बरसात हो या धूप
न उस बात की अभिलाषा
न उस बात की भूख,
कल सूरज उगेगा
निखर आयेगा
धरती का रूप।

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Responses

  1. बरसात का बहुत सुन्दर दृश्य वर्णित किया है आपने इस सुन्दर कविता में… लाजवाब लेखन

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