खोजता मन है खिलौना ( प्रगतिवाद से अलंकृत)
खोजता मन है खिलौना
आसमां छत धरा बिछोना
गेहूं की बाली सी कोमल
और स्वर्ण सी जटाएं
बोलती मिश्री हैं मन में
काली-काली ये फिजाएं
धुंध छाए आसमां पर
कौंध बिजली की उठी
लिपटकर स्वर्ण रश्मि से
एक कली मन में खिली
तीक्ष्ण गन्ध से मन हरा
हो गया सुन्दर सलोना
खोजता मन है खिलौना
खोजता मन है खिलौना ।।
खोजता मन है खिलौना
आसमां छत धरा बिछोना
गेहूं की बाली सी कोमल
और स्वर्ण सी जटाएं
बोलती मिश्री हैं मन में
काली-काली ये फिजाएं
धुंध छाए आसमां पर
कौंध बिजली की उठी
लिपटकर स्वर्ण रश्मि से
एक कली मन में खिली
तीक्ष्ण गन्ध से मन हरा
हो गया सुन्दर सलोना
खोजता मन है खिलौना
खोजता मन है खिलौना ।।
बहुत ही सुंदर है आप का भाव पक्ष तथा कला पक्ष शिल्प की संवेदना कविता को उत्तम बनाते हैं आपकी कविता दिल की संवेदना को व्यक्त करती है।
इतनी सुंदर समीक्षा हेतु धन्यवाद आपका अभिषेक जी
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प्रगतिवाद से अलंकृत बहुत ही सुंदर पंक्तियां सुंदर समाहार शक्ति सुंदर शब्दकोश उच्च कोटि के भाव और संवेदना
धन्यवाद
क्या बात है बहुत ही सुंदर समीक्षा की है आपने इसके लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद
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