गंगा काशी

माँ बाप को दु:ख न देना
उसने ही तुम्हें चलना सिखाया
जिस पैर पर चल कर
तुमने कामयाबी हासिल की
उसी पैर पर उसने कभी
अपनी जान न्योछावर किया ।
हंसना सिखाया बोलना सिखाया
आज तुम हो गए इतने बड़े कि
डांट कर बोलती बंद कर देते हो
उसे अपनो से कमजोर समझ के।
तीर्थ कर के तीर्थराज बनते हो
अरे नादान सारे तीर्थस्थान तो
तेरे घर में विराजमान है
अपनी काली पट्टी तो खोल
देख गंगा काशी तेरे घर में है।

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Responses

  1. सुंदर भावपूर्ण रचना है
    मां-बाप के प्रति आपके यह भाव सुमन अति सुंदर हैं
    जो बच्चे मां बाप को दुःख पहुंचाते हैं वह अवश्य ही पाप के भागी बनते हैं
    आपके द्वारा समाज को सुंदर संदेश प्रदान किया गया है

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