गणपति
प्रथम मौलिक जन-जन के गुरु
प्रबंधन के पुरोधा,नवाचार की शुरू
आस्था के आकाश पर सूर्य से बिराजमान हैं
धर्म के धरातल पर रचे कृतिमान हैं
मातृभक्ति की वज़ह से पिता की भी की अवहेलना
पिता की विश्राम की खातिर परशु का किया सामना
हाथ में फरसा लिए मूषक पर सवार हैं
एकदन्त दयावन्त बप्पा हमार हैं
बहुत ही सुन्दर, लाजबाब रचना, वाह
बहुत बहुत धन्यवाद
Sunder
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना
आभार ज्ञापित करती हूँ गीता जी
अतिसुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Very nice
A lot of thanks
बहुत सुंदर पंक्तियां