गरल
हृदय प्रभु ने सरल दिया था,
प्रीति युक्त चित्त तरल दिया था,
स्नेह सुधा से भरल दिया था ,
पर जब जग ने गरल दिया था,
द्वेष ओत-प्रोत करल दिया था ,
तब मैंने भी प्रति उत्तर में ,
इस जग को विष खरल दिया था,
प्रेम मार्ग का पथिक किंतु मैं ,
अगर जरुरत निज रक्षण को,
कालकूट भी मैं रचता हूँ,
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ,
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ।
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
सुंदर अभिव्यक्ति अजय जी