ग़रीब का बच्चा
कुछ दिनों से ,
एक इमारत का काम चल रहा था।
वहीं आस-पास ही,
कुछ मजदूरों का परिवार पल रहा था।
छोटे-छोटे बच्चे,
दिन भर खेलते रहते कुछ खेल।
एक दूजे की कमीज़ पकड़कर,
बनाते रहते थे रेल।
हर दिन कोई बच्चा इंजन बन,
चलता था आगे-आगे।
बाकी बच्चे डब्बे बन,
पीछे-पीछे भागे।
इसी तरह हर दिन,
यही खेल चलता था
और हर रोज एक बच्चा ,
इंजन या डब्बे में बदलता था
किंतु एक बालक सदा ही गार्ड बनता था,
एक दिन मैंने उस बालक से पूछा,
तुम क्यों ना बनते हो इंजन या डब्बा
गार्ड ही क्यों बनते हो सदा
क्या डब्बे बनने में न आता है मजा।
वह बोला मेरे पास कमीज़ नहीं है,
फिर कैसे कोई दूजा बालक मुझे पकड़ेगा।
मैं तो गार्ड ही बनता हूं
और इसी में खुश रहता हूं।
मैं कुछ सोच रही तो बोला..
बहुत जल्दी सीख लेता हूं
ज़िन्दगी का सबक,
ग़रीब का बच्चा हूं जी
बात-बात पर ज़िद नहीं किया करता।।
_____✍️गीता
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अनुवाद - February 17, 2021, 9:06 pm
अत्यंत हृदयस्पर्शी रचना सखि
Geeta kumari - February 17, 2021, 9:16 pm
बहुत-बहुत धन्यवाद सखि ❤️
sunil verma - February 18, 2021, 8:44 pm
सुन्दर अति सुन्दर,,,,,बहुत खूब
Geeta kumari - February 18, 2021, 9:33 pm
बहुत-बहुत आभार सर
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 19, 2021, 5:57 pm
बहुत खूब
Geeta kumari - February 19, 2021, 8:38 pm
शुक्रिया भाई जी
Satish Pandey - February 22, 2021, 3:16 pm
कवि गीता जी की लेखनी से उदभूत अति उत्तम रचना है यह। कवि की बारीकी नजर जीवन के किसी भी कोने से अछूती नहीं रही है। कवि की नजर सूक्ष्मातिसूक्ष्म संवेदना को समेटती हुई जीवन से जुड़ गई है। वाह
Geeta kumari - February 22, 2021, 6:10 pm
आपकी अद्भुत समीक्षा के लिए अभिवादन सतीश जी, बहुत-बहुत धन्यवाद