गांव की ज़िन्दगी ,अब पहले जैसी नहीं….
गांव की ज़िन्दगी ,अब पहले जैसी नहीं
जहाँ रिश्ते तो हैं ,वह मिठास नहीं
जहाँ मिट्टी तो है ,पर खुशबू नहीं
जहाँ तालाब तो है ,पर पानी नहीं
जहाँ आम बौराते तो हैं ,पर सुगन्ध का महकना नहीं
गांव की ज़िन्दगी ,अब पहले जैसी नहीं
यहाँ लोग बेगाने से हो गये
लोग सुख साधन के भूंखे हो गये
गांव अब शहरों में तब्दील हो गये
गांव अब चकाचौंध से लबरेज हो गये
बुजर्गों के आशिर्वाद में
जो स्नेह कीर्ति का भाव था
पाश्चात्य संस्कृति में ,कहीं विलुप्त हो गया
मिल जुल कर पर्व मनाने की भावना
अलगाव समय रूपी भट्ठी में जल गयी
गांव की ज़िन्दगी ,अब पहले जैसी नहीं
आदमी को आदमी से मिलने की फुर्सत कहाँ
इन्सानियत और भाईचारा शहरीकरण में खो गया
आधुनिकता का नशा हर व्यक्ति पर छा गया
जो छलकता था प्यार ,वो दिखावा बनकर रह गया
पैसों के लिए हर शख्श पलायन कर गया
विश्वास का घर अब खण्डहर बन गया
गांव की ज़िन्दगी ,अब पहले जैसी नहीं….
Very nice
Please AP Meri kavita “azaadi” padhke bataeye kaisi hai
Thanks
OK sir, I will read your poem
बहुत ही बेहतरीन रचना ,
सच में इंसान बहुत बदल गया है
चाहे फिर गांव हो या फिर शहर हो।
Thanks
बहुत खूब
Thanks ma’am
True
Thanks
NICE
Thanks
वाह प्रभात सर
Atisunder