गाये जा गीत मिलन के
तू अपनी लगन के
सजन घर जाना हैं
काहे छलके नैनों की गगरी, काहे बरसे जल
तुझ बिन सूनी साजन की नगरी, परदेसिया घर चल
प्यासे हैं दीप गगन के
तेरे दर्शन के
सजन घर जाना हैं
लूट ना जाये जीवन का डेरा, मुझको हैं यह ग़म
हम अकेले, ये जग लुटेरा, बिछुड़े ना मिल के हम
बिगड़े नसीब ना बन के
ये दिन जीवन के
सजन घर जाना हैं
डोले नयन प्रीतम के द्वारे, मिलने की हैं धून
बालम तेरा तुझको पुकारे, याद आने वाले सुन !
साथी मिलेंगे बचपन के
खिलेंगे फूल मन के
सजन घर जाना हैं
nice poem !!
वाह बहुत सुंदर
Very good