गीत ठंडक के गुनगुनाता हूँ

गीत ठंडक के
गुनगुनाता हूँ,
शूल सी चुभ रही हवाओं में
खुद ही खुद दांत
कटकटाता हूँ,
ये जो संगीत है
स्वयं उपजा,
इसकी धुन में रहता हूँ
जिगर को नचाता हूँ।
राग में रागिनी मिलाता हूँ
बर्फ को बर्फ में रगड़ता हूँ,
उसी से आग बना लेता हूँ।
हाथ में हो न हो लकीर मेरे
कर्म की राह पकड़ लेता हूँ,
स्वेद कितना भी बहे खूब बहे
खुद ही खुद भाग जगा लेता हूं।
अगर कम भी मिले
अपनी अपेक्षा से
उसे स्वीकार करता हूँ,
सदा संतुष्टि रखता हूँ।
शूल सी ठंड में
पावक जला साहस की
थोड़ा सा,
उसे ही ताप लेता हूँ,
स्वयं की भाप लेता हूँ।
दिलों में बढ़ रही ठंडक
का पारा
नाप लेता हूँ।
— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. “बर्फ को बर्फ में रगड़ता हूँ,उसी से आग बना लेता हूँ।”
    ठंड के मौसम को और भी ठंडा बनाती हुई कवि की बहुत सुन्दर रचना

New Report

Close