“गुदड़ी का लाल”

बेबस बालक की होली
कैसे हो रंगों से भरी ?
एक तो तन पर फटे पुराने
चीथड़े लिपटे हैं
दूजे दो निवालों की खातिर
दुधमुहे बालक तरसते हैं
कितना कठिन होगा इनका जीवन
यही सोंचकर हम सिहरते हैं
बेबस और लाचारी में
कैसे इनके दिन कटते हैं !!

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. गरीब की बेबस भरी होली के दर्शन कराते हुए रचना ह्रदय विदारक मार्मिक

+

New Report

Close