घमंड इंसान को गिरा देता है
घमंड इंसान को गिरा देता है,
अहंकार मौलिकता को चुरा लेता है,
जो समझता है मैं ही इस जंगल का शेर हूँ
उस शेर को सवा शेर हरा देता है।
शेरों का सा संघर्ष
इंसान की फितरत नहीं है दोस्तों
आपके पास न तीखे नाख़ून हैं
न नुकीले दाड़ हैं,
बस कलम की ताकत है
उसे नुकीला बनाओ, समाज की उन्नति के लिए।
दूसरे की अवनति के लिए नहीं।
क्योंकि प्रकृति में भी लोकतंत्र है,
यहाँ हर कोई हमेशा राजा नहीं रहता है,
सच कभी किसी को
और कभी किसी को हरा देता है।
घमंड इंसान को गिरा देता है,
अहंकार मौलिकता को चुरा लेता है।
——– डॉ. सतीश पांडेय
बहुत ही अच्छी कविता लिखी है
सादर धन्यवाद
बहुत खूब..साहित्य ही समाज का दर्पण है।
सादर धन्यवाद जी
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद, और सर्वश्रेष्ठ आलोचक का पुरस्कार प्राप्त होने पर बहुत बहुत बधाई शास्त्री जी