घाव और मिठास
स्वपन में मैं रसोई में खड़ी थी,
रसोई में रखे, कैंची, चाकू और बेलन में,
ज़बरदस्त जंग छिड़ी थी
कि यदि चाहे, तो कौन
दे सकता है, ज्यादा घाव
मुझे भी हुआ सुनने का चाव..
देखा दूसरी दिशा में तो
चीनी, मिसरी और बूरा की
सभा सजी थी…
यहां चर्चा थी कि,
कौन देता है ज्यादा मिठास
और फिर मैंने देखा…………
सामने “शब्द ” खड़ा मुस्कुरा रहा था,
सच ही तो है,…..
शब्द चाहे तो दे दे घाव
शब्द चाहे तो मिले मिठास..
*****✍️गीता*****
शीतल वाणी बोलिए
शीतल होय शरीर।
लाइलाज ये रोग है
खाय बचन के तीर।।
अतिसुंदर भाव अतिसुंदर रचना।।
वाह भाई जी बहुत सुंदर समीक्षा । सादर धन्यवाद आपका
सादर अभिवादन🙏
वाह वाह
सामने “शब्द ” खड़ा मुस्कुरा रहा था,
सच ही तो है,…..
शब्द चाहे तो दे दे घाव
शब्द चाहे तो मिले मिठास..
लेखनी की इस शानदार प्रतिभा की जितनी तारीफ की जाए वह कम है। रसोई में मौजूद चीजों का मानवीकरण कर सुन्दर प्रस्तुति दी है। बहुत खूब।
आपकी दी हुई सटीक और बेहतरीन समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏।बस ऐसे ही मार्ग दर्शन करते रहें ।
Beautiful line
Thank you
सुन्दर