चला चली का मेला
आखिर इक दिन सबको जाना है
यह जग चला चली का मेला है
यहाँ किसी का नही ठिकाना है
फिर किस बात का घबराना है
बस इतना सा हमारा अफ़साना है
आख़िर इक दिन सबको जाना है
ना कुछ संग आया था,ना जाना है
कर्मो ने ही अपना फर्ज निभाना है
पाप पुण्य की गठरी बांध उड़ जाना है
पांच तत्व की काया को मिट्टी हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है
आत्मा को आवागमन से मुक्त कर क्षितिज पार जाना है
कुछ प्रतीक्षारत तारों को एक बार गले लगाना है
फिर मोह माया की डोर तोड़ रूहानी यात्रा पर जाना है
आत्मा को परमात्मा में विलीन हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है।
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Geeta kumari - February 25, 2021, 5:13 pm
सच ही लिखा है आपने, बहुत सुंदर और यथार्थ परक रचना
Anu Singla - February 25, 2021, 10:11 pm
धन्यवाद गीता जी
Rakesh Saxena - February 25, 2021, 10:04 pm
Bhut Sahi
Anu Singla - February 25, 2021, 10:11 pm
बहुत बहुत आभार
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 26, 2021, 4:15 pm
अतिसुंदर भाव
Anu Singla - February 26, 2021, 4:25 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
Satish Pandey - February 28, 2021, 4:58 pm
यह जग चला चली का मेला है
यहाँ किसी का नही ठिकाना है
फिर किस बात का घबराना है
बस इतना सा हमारा अफ़साना है
आख़िर इक दिन सबको जाना है।
——– जीवन दर्शन से जुड़ी बहुत सुन्दर रचना। बेहतरीन प्रस्तुति
Anu Singla - February 28, 2021, 6:11 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
Pragya Shukla - March 8, 2021, 2:27 pm
Happy women’s Day Dear Anu
Pragya Shukla - March 8, 2021, 1:45 pm
सही कहा अनु…
Thought full poetry
Anu Singla - March 8, 2021, 2:22 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
आप कहां थे इतने दिन
Pragya Shukla - March 8, 2021, 2:26 pm
जीवन में बहुत उतार चढ़ाव दिख रहे हैं,
उन्हीं में व्यस्त थी पर अब आ गई हूँ…
आपने नोटिस किया यह बहुत अच्छा लगा…
Pragya Shukla - March 8, 2021, 1:46 pm
महिला दिवस पर कुछ लिखो मेरी इच्छा है