चला चली का मेला

आखिर इक दिन सबको जाना है

यह जग चला चली का मेला है
यहाँ किसी का नही ठिकाना है
फिर किस बात का घबराना है
बस इतना सा हमारा अफ़साना है
आख़िर इक दिन सबको जाना है

ना कुछ संग आया था,ना जाना है
कर्मो ने ही अपना फर्ज निभाना है
पाप पुण्य की गठरी बांध उड़ जाना है
पांच तत्व की काया को मिट्टी हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है

आत्मा को आवागमन से मुक्त कर क्षितिज पार जाना है
कुछ प्रतीक्षारत तारों को एक बार गले लगाना है
फिर मोह माया की डोर तोड़ रूहानी यात्रा पर जाना है
आत्मा को परमात्मा में विलीन हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है।

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Responses

  1. यह जग चला चली का मेला है
    यहाँ किसी का नही ठिकाना है
    फिर किस बात का घबराना है
    बस इतना सा हमारा अफ़साना है
    आख़िर इक दिन सबको जाना है।
    ——– जीवन दर्शन से जुड़ी बहुत सुन्दर रचना। बेहतरीन प्रस्तुति

      1. जीवन में बहुत उतार चढ़ाव दिख रहे हैं,
        उन्हीं में व्यस्त थी पर अब आ गई हूँ…
        आपने नोटिस किया यह बहुत अच्छा लगा…

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