चला चली का मेला
आखिर इक दिन सबको जाना है
यह जग चला चली का मेला है
यहाँ किसी का नही ठिकाना है
फिर किस बात का घबराना है
बस इतना सा हमारा अफ़साना है
आख़िर इक दिन सबको जाना है
ना कुछ संग आया था,ना जाना है
कर्मो ने ही अपना फर्ज निभाना है
पाप पुण्य की गठरी बांध उड़ जाना है
पांच तत्व की काया को मिट्टी हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है
आत्मा को आवागमन से मुक्त कर क्षितिज पार जाना है
कुछ प्रतीक्षारत तारों को एक बार गले लगाना है
फिर मोह माया की डोर तोड़ रूहानी यात्रा पर जाना है
आत्मा को परमात्मा में विलीन हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है।
सच ही लिखा है आपने, बहुत सुंदर और यथार्थ परक रचना
धन्यवाद गीता जी
Bhut Sahi
बहुत बहुत आभार
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद
यह जग चला चली का मेला है
यहाँ किसी का नही ठिकाना है
फिर किस बात का घबराना है
बस इतना सा हमारा अफ़साना है
आख़िर इक दिन सबको जाना है।
——– जीवन दर्शन से जुड़ी बहुत सुन्दर रचना। बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत बहुत धन्यवाद
Happy women’s Day Dear Anu
सही कहा अनु…
Thought full poetry
बहुत बहुत धन्यवाद
आप कहां थे इतने दिन
जीवन में बहुत उतार चढ़ाव दिख रहे हैं,
उन्हीं में व्यस्त थी पर अब आ गई हूँ…
आपने नोटिस किया यह बहुत अच्छा लगा…
महिला दिवस पर कुछ लिखो मेरी इच्छा है