चल आ मैदान में..
चल आ मैदान में पुलकित हो,
ना रख चिंता ना विचलित हो..
तेरे मार्ग की हर इक-इक व्याधि,
तेरी आत्म शक्ति से परिचित हो..
भय बंधन काट के बाहर आ,
नित क्रंदन काट के बाहर आ..
ना हो अभिमान से गदगद तू,
अभिनंदन काट के बाहर आ..
अब उठा प्रयत्नों की आंधी,
ताकि इतिहास भी गर्वित हो..
तेरे मार्ग की हर इक-इक व्याधि,
तेरी आत्म शक्ति से परिचित हो..
क्यों लगे किसी का साथ तुझे,
क्यों थामे कोई हाथ तुझे..
है पर्वत सा साहस तुझमे,
तो डरने की क्या बात तुझे..
कुछ कर ऐसा तेरे परिजन,
तेरे ही नाम से चर्चित हो..
तेरे मार्ग की हर इक-इक व्याधि,
तेरी आत्म शक्ति से परिचित हो..
तू अविरल जल की धारा बन,
दैदीप्यमान ध्रुव तारा बन..
ना आस किसी की रख मन में,
तू अपना खुद ही सहारा बन..
बस लक्ष्य साध और बढ़ता जा,
भटकाव न तुझमे किंचित हो..
तेरे मार्ग की हर इक-इक व्याधि,
तेरी आत्म शक्ति से परिचित हो..
– प्रयाग
मायने :
पुलकित – प्रसन्न
क्रंदन – विलाप करना/ रोना
अभिनंदन – बधाई/प्रशंसा
दैदीप्यमान – प्रकाशयुक्त
किंचित – थोड़ा भी
बहुत खूब
Thanks For Compliment
प्रेरणादायक सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया जी
प्रेरणादयक रचना
Thank You Ji
Wah
धन्यवाद