चादर जितने पांव पसारो
अभिलाषा और ईर्श्या में,
रात-दिन सा अंतर जानो तुम।
अभिलाषा मजबूत रखो,
ईर्श्या से दिल ना जलाओ तुम।।
चादर जितने पांव पसारो,
पांव अपने ना कटाओ तुम।।
अपनी मेहनत से चांद पकड़ो,
उसे नीचे ना गिराओ तुम।
“उनके घर में नई कार है,
मेरा स्कूटर बिल्कुल बेकार है”।
“एयर कंडीशंड घर है उनका,
अपना कूलर, पंखा भंगार है”।।
“उनका घर माॅर्डन स्टाईल का,
अपना पुराना खंडहर सा है”।
“वो पार्लर, किटीपार्टी जाती,
मेरा जीवन ही बेकार है”।।
ये बातें जिस घर में होती,
वहां अज्ञान अंधेरा है।
चादर जितने पांव पसारो,
वहीं शांति का डेरा है।।
चादर जितने पांव पसारो,
पांव अपने ना कटाओ तुम।।
अपनी मेहनत से चांद पकड़ो,
उसे नीचे ना गिराओ तुम।
—— बहुत ही लाजवाब पंक्तियाँ। बहुत सुंदर कविता।
आपकी सुंदर समीक्षा पढ़ते ही कलम में पंख उग आते हैं 🙏😊
धन्यवाद् 🙏
चादर जितने पांव पसारो,
वहीं शांति का डेरा है।।
________अपनी सामर्थ्य अनुसार रहने की सुन्दर प्रेरणा देती हुई बहुत ही उत्तम रचना
बहुत खूब
सुंदर
अभिलाषा और ईर्श्या में,
रात-दिन सा अंतर जानो तुम।
अभिलाषा मजबूत रखो,
ईर्श्या से दिल ना जलाओ तुम।।
चादर जितने पांव पसारो,
पांव अपने ना कटाओ तुम।।
बहुत ही सुंदर रचना