चिंता न कर तू चिंता चिता है
चिंता में डूबे हुए ओ मनुज सुन
चिंता न कर तू चिंता चिता है।
चिंता से होता नहीं लाभ कुछ भी,
होता है वो जो रब ने लिखा है।
भले ही तुझे कष्ट घेरें अनेकों
तेरी राह में लाख बाधाएं आएं,
तब भी न होना विचलित कभी तू
कष्टों के आगे कदम जीत पायें।
सुखी कौन, सबके दुख अपने अपने,
है कौन ऐसा जो गम ने न घेरा,
अभी जो तुझे लग रहा है अंधेरा
वही कल सुबह तुझको देगा सवेरा।
हिम्मत से दुःख की रातें बिता ले
तेरी सुबह में सुख भी लिखा है।
चिंता में डूबे हुए ओ मनुज सुन
चिन्ता न कर तू चिंता चिता है।
चिंता से होता है नहीं लाभ कुछ भी
होता है वो जो रब ने लिखा है।
वाह सर ,कमाल की कविता, बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने।
सादर धन्यवाद
बहुत ही खूबसूरती से चिंता ना करने की प्रेरणा देती हुई बहुत शानदार रचना । ” चिंता में डूबे हुए ओ मनुज सुन, चिंता ना कर, चिंता चिता समान है ।” बहुत सुंदर शिल्प । सत्य ही है चिंता से कोई लाभ नहीं होता है । वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है ।
इस सुंदर समीक्षा हेतु धन्यवाद शब्द भी कम है। बहुत ही सुंदर व प्रेरणादाई समीक्षा की है आपने गीता जी, जय हो
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद शास्त्री जी
आपकी यह कविता उच्च सोंच से परिपूर्ण है
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी
सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद
सुन्दर प्रस्तुति