चितचोर
मोहक छवि है कैसी, मनभावन कान्हा चितचोर की।
माखनचोरी की लीला करते ब्रिज के माखनचोर की।।
वसुदेव के सुत, जो वासुदेव कहाते थे
नन्द बाबा के घर में नित दृश्य नया दिखाते थे
यशोदानन्दन नामथा जिनका मुख में ब्रह्माण्ड दिखातेथे
बात- बात में जो गिरिवर को कनिष्ठा पर उठाते थे
अपने सदन में छोङ,घर-घर माखन छिप कर खाते थे
यह दृश्य है ग्वालबाल की टोली के सरदार की।
मोहक—-
माँ जशोदा थी बाबा नन्द की पटरानी
नौ लाख गौवन की थी वो गोकुल की महारानी
नित सवेरे दधी मथकर माखन को सिक पर रखती थी
कुछ पल में माखन मटके से, ना जाने कैसे घटती थी
चिन्तित थी वो देख पतीला खाली
माखन कहाँ गया बता दे कोई आली
क्या करू कैसे ख़बर लूँ उस माखनचोर की ।
मोहक—–
योजना थी छिपकर चोरन को देखन की
पर यह क्या, ये मण्डली है अपने कृष्णन की
बङे शान से निजगृह में चोरी करन गोपाल हैं आयो
बंधुजन ने तुरत लियो हैं झुककर पीठ चढायो
कुछ खायो हैं कुछ आनन पर लपटायो
मित्र जनों को भी संग खाने का पाठ सिखायो
शब्द नहीं दृश्य हैं ,ऐसो माता हुई, विभोर की।
मोहक—-
मैया ने मन को संभाला, कान पकङकर कृष्ण को थामा
चोरी क्यू की अब तो बता दे,जो कहना है वो भी सुना दे
मैया मैंने चोरी कहाँ की,जले हाथों में पीङा बङी थी
जलन की पीड़ा मिटाने,मैं तो चला था माखन लगाने
मुख पे जो चींटी लगी थीं,मैं लगा था उसको भगाने
मुखपे है बरबस लपटाये,मुझे तो चाहत है तेरे कोर की ।
मोहक—
सुनकर कृष्ण की मीठी बातें सहसा ली गोदी में उठाके
कान्हा तू पहले बताते,क्यू छिपकर हो माखन खाते
तू तो जन-जन को भाते,फिर काहे को हो सताते
मैया मैंनो चोरी कहाँ की,ये करनी है मेरे सखा की
मुझे तो लत है माखनमिश्री व तेरे आँचल के छोङ की।
मोहक—-
सुमन आर्या
बहुत खूब, बहुत खूब
आभार ज्ञापित
बहुत सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद गीताजी
Braj hoga brij nahi.
Naam tha ke beech space hona chaahiye baki Uttam bhaav
कमी की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिए आभार ।
‘ब्रिज’ भूलवश’ ब्रज’ के स्थान पर ।
(-) छूटा जगह के अभाव में ।
धन्यवाद ।
मनमोहक छवि मनमोहन की
और मनहर है हर लीला उनकी।
आनन्दकन्द आनन्द सबन हित
घर-घर चोरी की माखन की।।
बहुत ही सुंदर रचना…… वाह वाह क्या बात है!!!!!!
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर भाव