जब-जब भी याद बचपन को करती हूँ
जन्म लेकर जब आए,
इस दुनियाँ में हम पहली बार।
जो भी दृश्य देखा,
चकित हृदय हमारा था।
बारिश की पहली बूॅंदों ने भी,
चकित इतना कर डाला
पानी ,पानी कहकर हमने,
वो दृश्य सबको दिखा डाला।
पहली बार जब देखे,
उड़ते हुए पंछी नभ में।
फैलाकर हाथ यूँ ही अपने,
उड़ने के देखे थे सपने।
पहली बार जब देखे,
गगन में चाॅंद और तारे
माँ से माँग लिए हमने,
अपनी मुट्ठी में वो सारे।
आज जब-जब भी याद बचपन को करती हूँ,
माँ-पापा की सूरत ही सामने आती रहती है॥
_______✍गीता
अति सुंदर
धन्यवाद ऋषि जी
आज जब-जब भी याद बचपन को करती हूँ,
माँ-पापा की सूरत ही सामने आती रहती।
—– बहुत ही सुन्दर और उच्चस्तरीय रचना।
उत्साह वर्धन करने वाली और प्रेरक समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी, अभिवादन सर
बहुत सुंदर रचना
आभार पीयूष जी
अतिसुंदर भाव
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी
बहुत खूब
बहुत-बहुत धन्यवाद इंद्रा जी, सादर आभार