जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार — 2
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जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार ।।1।।
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तेरे द्वार से आज तक,
कोई लौट के नहीं आया ।
जो जैसा तुझसे माँगा,
तुमने वैसा उसको दिया ।
तेरे नाम से पापियों के पाप धूलते
तेरे नाम से योगीजन तुमको है पाते ।।
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जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार ।।2।।
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सबके हृदय में तुम सूक्ष्म बनके रहते
जो तुमको भजते, वो तुमको है पाते
मेरी शब्दों त्रुटियाँ प्रभू व्याकरण
हम है भिखारी दाता राम,
तुमसे यही हम भीख माँगते ।।
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जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार ।।3।।
जय श्री सीताराम ।।
अति सुंदर
जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार
______ बहुत सुंदर भावना से परिपूर्ण बहुत सुंदर रचना
जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार — 2
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जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम..
राम जी का आशीर्वाद होने पर किसी के
सानिध्य की आवश्यकता नही होती..