*जयमाला की बेला*
याद आई मुझे वो घड़ी
मेरी बहन की शादी थी
बुआ की वो प्यारी लाडली थी
मैं गई थी थोड़ा देर से ही
जाकर जल्दी तैयार हुई
जयमाला की बेला थी
सारी बहनों को संग में जाना था
मैं कोने में छुपकर बैठी
मुझको संग ना जाना था
सब चली गईं मुझे ढूंढ-ढूंढकर
मैं छिपकर कोने में बैठी रही
हो गया जब जयमाल तो
मैं कोने से निकल पड़ी
फिर पकड़ लिया सबने मुझको
खींचकर जबरन ले गईं वहाँ
फोटो खिंचवाकर
मैं खिसक गई
छुप गई नहीं था कोई जहाँ
फिर दीदी का देवर दीवाना
पहुंच गया मुझे ढूंढते हुए
मैं उसी से थी छिप रही अभी तक
वो पहुंच गया मुझे सूंघते हुए
वो बोला मुझसे कैसी हो ??
मैंने चाँद की तरफ इशारा किया
फिर बोला तुम कुछ बोलो ना
मैंने भाई बोल दिया
जब चलने लगी वहाँ से मैं तो
पकड़ ली उसने मेरी चूनर
बोला तेरा दीवाना हूँ
भाई ना हूँ मैं
तेरा शौहर !
फिर क्या था मुझको गुस्सा आया
खींचकर मारे मैंने दो-चार थप्पड़
हल्का-सा भूचाल आया
वो मजनू फिर ना मुझे दिखा
दीदी भी हो गईं विदा….
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Geeta kumari - November 5, 2020, 1:52 pm
हा हा बहुत लाजवाब
Pragya Shukla - November 5, 2020, 2:02 pm
धन्यवाद दी
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - November 5, 2020, 2:36 pm
अतिसुंदर
Pragya Shukla - November 5, 2020, 2:40 pm
धन्यवाद
Rishi Kumar - November 5, 2020, 4:44 pm
हा हा हा हा हा हा हा
लाजवाब 🙂👌✍✍
Pragya Shukla - November 5, 2020, 6:17 pm
धन्यवाद rishi
Rajeev Ranjan - November 5, 2020, 5:34 pm
दबाई गई चिंगारी अक्सर
ज्वालामुखी बन जाती है
छिप छिपकर टालते जाना
अन्यायी का हौसला बढ़ाती है
Pragya Shukla - November 5, 2020, 7:09 pm
धन्यवाद आपका
Rajeev Ranjan - November 6, 2020, 5:16 pm
आपका भी
Dhruv kumar - November 8, 2020, 9:47 am
Good