*जय हो कृषक,जय हो किसान*
खेतों से निकलकर,
राजधानी की सड़कों पर
आ गया है किसान
देखो कितना है परेशान
दिल्ली की सर्दी में,
खुद खाना बना रहा
खुले अंबर के नीचे
देखो रात बिता रहा
सड़कों पर बैठा है उदास,
लेकर आया है कुछ आस
तुम डटे रहो, तुम लगे रहो
हो पूरी तेरी हर कामना
क्योंकि शुद्ध है तेरी भावना
सबको अन्न देता,
अन्नदाता तू है महान
देश की मिट्टी की तू शान,
जय हो कृषक,जय हो किसान
*****✍️गीता
यथार्थ और मार्मिक अभिव्यक्ति किसान पर बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी
किसानों के हित की लड़ाई का यथार्थ चित्रण एक खूबसूरत रचना
बहुत बहुत धन्यवाद सर,आभार
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी
अतिसुंदर भाव
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏