जल रहा है आज रावण
जल रहा है आज रावण
राम जी के वाण से,
उड़ रही हैं खूब लपटें
देखता जग शान से।
गा रहे हैं जोश से सब
राम राघव की बड़ाई
अबकी ऐसा वाण मारो
दूर भागे सब बुराई।
लाल लपटें आग ले
कहती बुराई भाग ले,
सब धुँवा सा हो गया
भस्म रावण आग से।
कुछ मिले शिक्षा हमें
रावण बुराई को लिए था
इसलिए राघव के वाणों ने
उसे छलनी किया था।
ईश के वाणों का भय लो
अब बुराई त्याग दो,
सब रहें खुश सब जियें
सबको बराबर भाग दो,
आज अपनी सब बुराई
को निकालो आग दो।
वाह वाह, बहुत खूब
बहुत खूब
NICE
दशहरा पर्व का यथार्थ चित्रण किया है कवि सतीश जी ने अपनी इस कविता में। सत्य की असत्य पर जीत हो और रावण के जलने का अर्थ बुराइयों को जलाना है श्री राम सत्य और मर्यादा के प्रतीक और रावण बुराइयों का प्रतीक , बहुत ही सुन्दर और प्रेरक रचना
बहुत ही जबरदस्त
Very nice
अतिसुंदर भाव