ज़िन्दगी के इस खेल में

तेरी परछाई को देख लेता हूँ
चेहरे को देखने का मौका कहाँ मिलता।
ज़िन्दगी के इस खेल में
दौड़-दौड़ दौड़ लेता हूँ चौका कहाँ मिलता।।

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Responses

  1. बहुत बहुत शानदार लिखा है शास्त्री जी, वाह वाह
    तेरी परछाई को देख लेता हूँ
    चेहरे को देखने का मौका कहाँ ,
    काबिलेतारीफ पंक्तियाँ

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