Categories: शेर-ओ-शायरी
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
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बहुत बहुत शानदार लिखा है शास्त्री जी, वाह वाह
तेरी परछाई को देख लेता हूँ
चेहरे को देखने का मौका कहाँ ,
काबिलेतारीफ पंक्तियाँ
बहुत बहुत धन्यवाद पाण्डेयजी
अगली पंक्ति पर भी गौर फरमाईए
Bahut shaandaaar
धन्यवाद
बहुत खूब भाई जी लाजवाब अभिव्यक्ति
अतिसुंदर