ज़ुल्फ तुम्हारा
ज़ुल्फ तुम्हारा, जैसे काली घटा हो।
चाँद के रुख़्सार से, इसे तुम हटा दो।
बिखरने दो चाँदनी हुस्नो-जमाल की,
इसपे जैसे कोई चकोर मर मिटा हो।
पहलू में बैठो, लौटा दो मुझे दिले-सुकूँ,
मेरी नींद, मेरा चैन जो तुमने लूटा हो।
सारी रात यूँ ही, आँखों में गुज़रने दो,
करें पूरी, गर कोई बात अधूरा छूटा हो।
माँगु मुराद, ये मंजर यहीं ठहर जाए,
देखो दूर कहीं कोई सितारा टूटा हो।
देवेश साखरे ‘देव’
Wah
धन्यवाद
Khoob kaha
धन्यवाद
Bahut khub
शुक्रिया
वाह बहुत सुंदर रचना ढेरों बधाइयां
धन्यवाद
वाह
धन्यवाद