Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
बूंद बूंद बूंदें।
बूंद बूंद बूंदें बूंद बूंद बूंदें बूंद बूंद बरसती है , आंखों से मेरी । तूने क्यों की रुसवाई , जज्बातों से मेरे। बूंद बूंद…
“प्यार वाली खिड़की”
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यादें
बेवजह, बेसबब सी खुशी जाने क्यों थीं? चुपके से यादें मेरे दिल में समायीं थीं, अकेले नहीं, काफ़िला संग लाईं थीं, मेरे साथ दोस्ती निभाने…
Very good
Thanks
अतिसुंदर
सादर धन्यवाद जी
बहुत ही सुन्दर काव्य रचना।
“क्या पता थी कश्मकश नभ – धरा के बीच में”
समीक्षा के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं सर….
अद्भुत लेखन। सैल्यूट…
आपके द्वारा की गई इस सुंदर समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Welcome ji
Very nice lines
Thanks
Nice poem
Thanks
बहुत बढ़िया वाह जी
Thanks