जात आदमी के
आसाँ नहीं समझना हर बात आदमी के,
कि हँसने पे हो जाते वारदात आदमी के।
सीने में जल रहे है अगन दफ़न दफ़न से ,
बुझे हैं ना कफ़न से अलात आदमी के?
ईमां नहीं है जग पे ना खुद पे है भरोसा,
रुके कहाँ रुके हैं सवालात आदमी के?
दिन में हैं बेचैनी और रातों को उलझन,
संभले नहीं संभलते हयात आदमी के।
दो गज जमीं तक के छोड़े ना अवसर,
ख्वाहिशें बहुत हैं दिन रात आदमी के।
बना रहा था कुछ भी जो काम कुछ न आते,
जब मौत आती मुश्किल हालात आदमी के।
खुदा भी इससे हारा इसे चाहिए जग सारा,
अजीब सी है फितरत खयालात आदमी के।
वक्त बदलने पे वक़्त भी तो बदलता है,
पर एक नहीं बदलता ये जात आदमी के।
अजय अमिताभ सुमन
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Noorie Noor - January 18, 2021, 7:07 pm
बहुत अच्छा लिखते है आप प्लीज मेरी रचनः भी पढ़े
Ajay Amitabh Suman - January 18, 2021, 7:53 pm
जी बिल्कुल।
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 18, 2021, 7:25 pm
बहुत खूब
Ajay Amitabh Suman - January 18, 2021, 7:53 pm
धन्यवाद आपका
Rishi Kumar - January 18, 2021, 8:33 pm
बहुत सुंदर सर
Ajay Amitabh Suman - January 19, 2021, 10:58 am
धन्यवाद ऋषि जी