जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल(तुल्य) (2 बार गाये)
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जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल(तुल्य) ।।1।।
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हर बात के पीछे एक बात छिपी होती
अगर कर्मफल में आसक्ति छिपी हो तो शांति नहीं मिलती
मन तो पंछी आकाश में उड़ना चाहती,
लेकिन आत्मा ही परमात्मा को ही खोजती
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जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल (तुल्य) ।।2।।
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ये प्रकृति जीवों को मार-मारके खाया करती है,
रहम तो जीवों पे सिर्फ परमात्मा ही करता है ।
ये दुनिया एक-ना-एक दिन सबको मारन चाहती है ।
लेकिन ब्रह्म अपने जीवों को बचाता है
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जिसे भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल(तुल्य) ।।3।।
कवि विकास कुमार
वाह