जीत तक न बैठिए
साँस है जब तलक
तब तलक संघर्ष से
जीतिये जहान पूरा
जीत तक न बैठिए
छोड़िए मत कुछ अधूरा।
निकलिए राह में
उठाइये कदम अपने,
आज नहीं तो कल
आपको मिलेगी मंजिल।
थकिये मत, घबराइए मत
आप निडर रहेंगे तो
बाधाएं आपसे डरेंगी,
कठिनाइयां सरलता बनकर
खुद-ब-खुद राहों से हटेंगी।
खुद की राहों का उजाला
खुद जलकर कीजिये,
मुश्किलों का सामना
डटकर कीजिये।
सब जो करें करें
लेकिन आप कुछ
हटकर कीजिये,
लेकिन अपने सपने
सच कर लीजिए।
बहुत सुंदर काव्य रचना। भाषा व शिल्प का अद्भुत समन्वय
बहुत खूब
वाह अतिसुन्दर
“सब जो करें करें लेकिन आप कुछ
हटकर कीजिये,लेकिन अपने सपने सच कर लीजिए।’
बहुत सुंदर और प्रेरक काव्य रचना है कमला जी । सुन्दर कथ्य और बेहतरीन शिल्प के साथ बहुत ख़ूबसूरत कविता