जीभ महान्
हिम्मत तो देखो ज़ुबान की, कैंची जैसी चलती है,
बत्तीस दांतों घिरी होकर भी निडर हो मचलती है।
बिना हड्डी की मांसल जीभ, कई कमाल करती है,
फंसा दांत में तिनका, निकाल के ही दम भरती है।।
दुनियां भर के स्वाद का, ठेका जुबां ने ही ले रखा,
मजबूत दांतों के झुंड को गुलाम जुबां ने बना रखा।
पहले चखती फिर कहती, ये खा और वो मत खा,
बीमारी हो या चिढ़ाना, पहली हरकत जीभ दिखा।।
द्रोपदी की जुबान ने ही, महाभारत करवाया था,
अंधे का बेटा अंधा कह, दुर्योधन को भड़काया था।
जुबां से निकला वचन, राजा दशरथ ने निभाया था,
केकई को दिए वचन ने राम को वन भिजवाया था।।
इस जीभ ने ही कईयों के सर और घर तुड़वा दिए,
जीभ सम्भाल कर बात कर कईयों को लड़वा दिए।
जीभ ने मानव से खतरनाक कारनामे करवा दिए,
जीभकला से अनभिज्ञ जानवर बेजुबां कहला दिए।।
हिम्मत तो देखो ज़ुबान की, कैंची जैसी चलती है,
नेता, कवि और वक्ता को जुबां ही फेमस करती है
याद करना होतो वाक्यों को कई कई बार रटती है,
सदा सच बोलना और एक चुप सौ को हराती है।।
राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
9928305806
इस जीभ ने ही कईयों के सर और घर तुड़वा दिए,
जीभ सम्भाल कर बात कर कईयों को लड़वा दिए।
_____जीभ या जुबान पर बहुत सुंदर और सटीक रचना
“ख़ुदा को भी नहीं पसंद सख़्ती बयान में
इसीलिए नहीं दी हड्डी ज़बान में”।
धन्यवाद् 🙏 बहुत सुंदर समीक्षा
Ek ek pankti Satya hai
बहुत सुंदर राकेश जी
वाह