जीवन का दर्द लिखो कहती है
जीवन का दर्द लिखो कहती है
कलम आज बोलो कहती है
उपेक्षित-शोषित-उत्पीड़ित की
आवाज बनो कहती है।
प्यार-मुहब्बत पर लिखता हूँ
रोमांचित होने लगता हूँ,
जैसे ही रमने लगता हूँ
कलम मुझे कहने लगती है,
भूखे-प्यासे जीवन की
आवाज लिखो कहती है
कर्तव्य न भूलो कहती है।
मानव आधारित भेदभाव को
दूर करो कहती है,
समरसता हो जीवन में कुछ
ऐसा लिखने को कहती है।
सबके अधिकार बराबर हों
ऐसा प्रसार करो कहती है,
मानव-मानव में एका का
प्रसार करो कहती है।
जीवन का दर्द लिखो कहती है
कलम आज बोलो कहती है
उपेक्षित-शोषित-उत्पीड़ित की
आवाज बनो कहती है।
Sahi kaha
बहुत जबरदस्त लिखा है सर
“जीवन का दर्द लिखो कहती है कलम आज बोलो कहती है
उपेक्षित-शोषित-उत्पीड़ित की आवाज बनो कहती है।”
उपेक्षित शोषित और पीड़ितों की दुर्दशा बयान करती हुई कवि सतीश जी की सहृदय कलम उनकी आवाज़ बन कर गूंज रही है । कलम को प्रणाम,अति उत्तम लेखन
अतिसुंदर भाव