जीवन भर यह पाप करूँगा

स्वयं टूटकर स्वयं जुडूँगा सब कुछ अपने आप करूँगा।
विगत दिनों जो भूलें की हैं उनका पश्चाताप करूँगा।।

मेरी त्रुटि थी किया भरोसा मैंने अपने यारों पर।
समझ न पाया पग रख बैठा मैं जलते अंगारों पर।
यदि स्नान पड़े करनी अब असहनीय पीड़ा के सर में
करे विधाता दंड नियत यह किंचित नहीं विलाप करूँगा।
विगत दिनों जो भूले की हैं उनका पश्चाताप करूँगा।।

भेदभाव की फसल उगाकर धरा कहीं से धन्य नहीं है।
ऊँच-नीच है धर्मकर्म तो धर्मकर्म भी पुण्य नहीं है।
मैं शोषित वर्गों को उनका हक दिलवाकर ही दम लूँगा
पुण्य ! क्षमा कर देना मुझको जीवन भर यह पाप करूँगा।
विगत दिवस जो भूलें की हैं उनका पश्चाताप करूँगा।।

दागी छबि का पहनावे से धवल दिखावा अर्थहीन है।
मानवता से मुड़े मुखों का काशी काबा अर्थहीन है।
यदि दुखियों को हँसा सका तो मैं अपने दुख विसरा दूँगा
व्यथित नहीं हो हृदय किसी का ऐसे क्रियाकलाप करूँगा।
विगत दिनों जो भूलें की हैं उनका पश्चाताप करूँगा।।

करुनाहीन चक्षु के सम्मुख करुणामय विनती क्या करना।
निर्दयता ने जो हिय को दी पीड़ा की गिनती क्या करना।
क्या गिनती करना नेकी की परहित अथवा हरि सुमिरन की
बिखरा दूँगा कर की मनका फिर अनगिनती जाप करूँगा।
विगत दिनों जो भूलें की हैं उनका पश्चाताप करूँगा।।

संजय नारायण

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