Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
रण निश्चित हो तो डरना कैसा
मन शंकित हो तो बढ़ना कैसा रण निश्चित हो तो डरना कैसा जब मान लिया तो मान लिया अब विरुद्ध चाहे स्वयं विभु हों जब…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
मृत्यु – एक पड़ाव
मृत्यु – एक पड़ाव अंधकार नही , जीवन का द्वार है मृत्यु भय नही , उससे मिलने की राह है मृत्यु होता तात्पर्य…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
वाह शब्दों के चयन अति सुंदर है।
धन्यवाद