जूनून – काश सपने मैं जी लू
बेवजह ख्वाब को हम जिए जा रहे हैं
हकीकत को धोखा दिए जा रहे हैं
पता है मयस्सर, न होंगी ये ख्वाहिश
मगर कोशिशें हम, किए जा रहे हैं
मिली मुफ्त में है, ये नींदे ये ख्वाहिश
अगर टूटी ख्वाहिश, बेशक न रोना है
खुलेगी जब आंखें, जनाब
सामना हकीकत से ही होना है
✍️स्वरचित कविता-प्रिया वर्मा
स्नेही मित्रगणो से विनम्र निवेदन है की वे कृपया मेरी स्वरचित कविता देखे और मेरी प्रेरणा बनकर मेरा मार्गदर्शन करें
बहुत खूबसूरत पंक्तियां👏👏
सादर आभार आदरणीया 🙏🙏
सुन्दर रचना
वाह
आखिर के शैर को शुरूआत में रखते और शुरुआत वाली
पदों को climex में तो अच्छा होता।
फिर भी बहुत अच्छी रचना।
आप सभी स्नेही मित्रगण को सादर प्रणाम और हार्दिक आभार की आपने मेरी रचना केवल देखा ही नहीं बल्कि मार्गदर्शन भी किया, आशा है आगामी दिनों मे आपका स्नेह बढ़ता रहेगा 🙏🙏
👌
beautiful poem
वाह