जो भी तुम कहते हो वही होगा।
जो भी तुम कहते हो वही होगा।
ऐसा सोचते हो तो नही होगा।।
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हमसें क्यूँ पूँछते हो पते ठिकाने।
मैं आसमाँ नहीं पता ज़मी होगा।।
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किसकी राहों में अब पलकें बिछाएं।
हम समंदर है मिलेगा जो नदी होगा।।
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ग़म जख़्म अश्क़ भरी दास्ताँने छोडो।
कौन अपना था जो अजनबी होगा।।
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काफ़िलो में तेरे हम नहीं मिलने वाले।
हम तन्हा रहेंगे तो गुजर नहीं होगा।।
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हमारी फ़ितरत में नहीं है मौसम होना।
जो आज तक यहाँ था कल कही होगा।।
@@@@RK@@@@
बहुत सुंदर
सुन्दर रचना