ज्योति जल अंधेरा मिटा
ज्योति जल
अंधेरा मिटा दे,
न घबरा हवा की बातों से
कितना बुझायेगी तुझे,
कब तक रुलायेगी तुझे।
ध्यान न दे
बस रोशनी फैला,
अंधेरा मिटा, सच को दिखा।
आ दिये में तेल बनकर
रुई की बत्ती बनकर
या खुद दिया बनकर
किसी भी रूप में आ
मगर आ अंधेरा मिटा,
जमाने को रोशन कर।
किसी बात से न डर,
तम को अपना परिचय दे
संवेदना को लय दे,
अंधेरे के भय से
राहत दे जीवन को
दुखी न कर मन को,
दुखी कर केवल
अंधेरे को।
अतुलनीय कविता
बहुत बहुत धन्यवाद
अत्युत्तम
सादर धन्यवाद जी