जख़्म
जख़्म तुझको मैं दिखा देता हूँ,
दर्द अपना मैं भुला लेता हूँ।
पास आकर जो बैठ जाते हैं,
उनको अपना मैं बना लेता हूँ।
कहते हैं मुझसे मन की अपनी,
मैं भी मन उनसे लगा लेता हूँ।
करते हैं खुल के बातें मुझसे,
तो खुल के मैं भी सुना लेता हूँ।
हैं नहीं जानते दिल की मेरे,
दिल में जिनको मैं छुपा लेता हूँ।
बैठ ख़ामोशी से देखो मुझको,
आँख परिंदों से मिला लेता हूँ।
घर है ना छत है सर पर मेरे,
राही खुद से ही खफ़ा रहता हूँ।।
राही अंजाना
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 23, 2021, 9:36 am
चलते चलते राहों में
पड़ गए पांव में छाले।
देख तेरे महफिल को
आ ‘ राही’ कुछ गाले।।
बहुत सुंदर राहीजी
आप आए महफिल सुहाना हो गया।
देख आपके जख्मों को
हर जख्म यहाँ से खो गया।
राही अंजाना - January 23, 2021, 11:05 am
आभार
राही अंजाना - January 23, 2021, 11:08 am
Aap fb pe jude sir rahi anjana se
Satish Pandey - January 24, 2021, 7:54 am
बहुत सुंदर रचना, वाह