जख़्म
जख़्म तुझको मैं दिखा देता हूँ,
दर्द अपना मैं भुला लेता हूँ।
पास आकर जो बैठ जाते हैं,
उनको अपना मैं बना लेता हूँ।
कहते हैं मुझसे मन की अपनी,
मैं भी मन उनसे लगा लेता हूँ।
करते हैं खुल के बातें मुझसे,
तो खुल के मैं भी सुना लेता हूँ।
हैं नहीं जानते दिल की मेरे,
दिल में जिनको मैं छुपा लेता हूँ।
बैठ ख़ामोशी से देखो मुझको,
आँख परिंदों से मिला लेता हूँ।
घर है ना छत है सर पर मेरे,
राही खुद से ही खफ़ा रहता हूँ।।
राही अंजाना
चलते चलते राहों में
पड़ गए पांव में छाले।
देख तेरे महफिल को
आ ‘ राही’ कुछ गाले।।
बहुत सुंदर राहीजी
आप आए महफिल सुहाना हो गया।
देख आपके जख्मों को
हर जख्म यहाँ से खो गया।
आभार
Aap fb pe jude sir rahi anjana se
बहुत सुंदर रचना, वाह