जज़्बात
यूँ अपने जज़्बात नुमाया क्यों करते हो !
मेरी ख़ातिर अश्क बहाया क्यों करते हो !!
क़िस्मत के लिक्खे से मैं भी वाकिफ़ हूँ !
बातों से मुझको बहलाया क्यों करते हो !!
जब साथ तुम्हारा है ही नहीं मुक़द्दर में !
फिर मेरे ख़्वाबों में आया क्यों करते हो !!
भूल के तुमको जिसने जीना सीख लिया !
उसकी ख़ातिर नींदें ज़ाया क्यों करते हो !!
अपना बनकर दुनिया ज़ख़्म लगाती है !
सबको अपने राज़ बताया क्यों करते हो !!
पत्थर दिल इंसानों की इस बस्ती में !
तुम शीशे के महल बनाया क्यों करते हो !!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
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Piyush Joshi - January 2, 2021, 10:16 pm
बहुत खूब, अतिसुन्दर रचना
Satish Pandey - January 2, 2021, 10:17 pm
बहुत उम्दा रचना
Geeta kumari - January 2, 2021, 10:40 pm
हृदय के जज्बात बयां करती हुई बहुत सुंदर रचना
अनुवाद - January 2, 2021, 10:42 pm
धन्यवाद मैंम
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 3, 2021, 9:03 am
अतिसुंदर भाव
Pragya Shukla - January 3, 2021, 10:18 pm
सुंदर भाव
vikash kumar - February 12, 2021, 6:49 pm
Jay ram jee ki